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    परिचय

    समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग, प्रारंभ से ही दिव्यांगजनों केसंशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध रहा है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मंत्रालय ने कई महत्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किए हैं। मंत्रालय दिव्यांगजनों की सहायता के लिए सात प्रकार के सेवा मॉडलों का उपयोग करता है। वर्ष 1980 से ही यह विभाग जागरूकता और संवेदीकरण कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है, मानव संसाधनों के विकास पर काम कर रहा है, अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन दे रहा है, और दिव्यांगजनों को सहायक उपकरण एवं आजीविका उपलब्ध करा रहा है। इस विभाग का उद्देश्य दिव्यांगजनों की सेवा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और अधिक सुदृढ़ करना है।संयुक्त राष्ट्र ने 1982 से 1992 तक की अवधि को विकलांगता दशक घोषित किया, जिससे कई राष्ट्रीय संस्थानों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ। प्रारंभ में ये संस्थान विभिन्न प्रकार की एकल विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के लिए काम कर रहे थे। इसके बाद, 1993 से 2002 तक के दशक को एशिया-प्रशांत का विकलांगता दशक घोषित किया गया, जिसे 2003 से 2013 तक बढ़ाया गया। इसी अवधि के दौरान भारत में पीडब्ल्यूडी (1995) अधिनियम और राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम (1999) को लागू किया गया।राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम (1999) के तहत, बहु-विकलांगता (अर्थात एक व्यक्ति में एक से अधिक प्रकार की विकलांगता) पर विशेष ध्यान दिया गया, और इसके सशक्तिकरण के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान की आवश्यकता महसूस की गई। इसी दिशा में, वर्ष 2005 में चेन्नई के मुत्तुकाडु स्थित ईस्ट कोस्ट रोड पर राष्ट्रीय बहुविकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण संस्थान (एनआईईपीएमडी) की स्थापना की गई। यह संस्थान चेन्नई सेंट्रल स्टेशन से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर एक सुंदर परिवेश में स्थित है। अपनी स्थापना के बाद से, एनआईईपीएमडी बहु-विकलांगता और एकल विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों को आउट पेशेंट सेवाओं, कुटीर सेवाओं, और विस्तार सेवाओं के माध्यम से सहायता प्रदान कर रहा है। इसके अलावा, यह संस्थान एक बहु-विषयक टीम मॉडल के जरिए सशक्तिकरण सेवाएं प्रदान करने में भी सक्रिय रूप से संलग्न है।

    भारत की 2011 की जनगणना में आठ प्रकार की विकलांगताओं से संबंधित आंकड़े एकत्र किए गए, जिसमें पहली बार बहु-विकलांगताओं को भी शामिल किया गया। इस डेटा ने देश में बहु-विकलांगता की व्यापकता को उजागर किया और समाज के इस वर्ग के पुनर्वास के लिए सेवाओं की योजना बनाने में एनआईईपीएमडी के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान किए। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल 2.68 करोड़ व्यक्ति विकलांग हैं, जो देश की कुल जनसंख्या का 2.21% हिस्सा हैं। इनमें से लगभग 21.16 लाख लोग बहु-विकलांगता की श्रेणी में आते हैं। इन प्रयासों का मुख्य उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों के सभी मानवाधिकारों की रक्षा और सुनिश्चित करना है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जिन्हें अधिक गहन सहायता की आवश्यकता होती है, अर्थात जो बहु-विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति है ।